Thursday, May 19, 2011

Prof. Piyush Sinha on BEN in Prabhat Khabar -लो कॉस्ट नहीं, गुड वैल्यू पर सोचिए

बिहार में आये बदलाव के बाद दूसरे राज्यों की तरह यहां भी उद्यमिता के प्रति रुझान बढ़ा है. अच्‍छे संस्थानों से पढ़े-लिखे युवकों में यह प्रवृत्ति विकसित हुई है कि वे खुद के लिए क्यों नहीं मेहनत करें. कहीं और जाकर नौकरी के बजाय अपने लिए काम क्यों नहीं करें. यदि आपके पास बेहतर आइडिया हो, तो लोग मदद को तैयार हैं. बिहार इंटरप्रेन्योर नेटवर्क (बेन) के बैनर तले युवा उद्यमियों के जुटान को मैं इसी कड़ी में देखता हूं.
सोशल नेटवर्क का सपोर्ट जरूरी
जो लोग सामाजिक उद्यमिता के क्षेत्र में आ रहे हैं, वे एक भावना के साथ आ रहे हैं. यहीं पर एक खास ध्यान देने वाली बात है. उद्यमिता की शुरुआत भावना से हो और संघर्ष की क्षमता नहीं हो, तो फ़िर वह हवा हो जायेगा. बिहार में इको सिस्टम बनाने की जरूरत है. इससे मेरा मतलब वातावरण के निर्माण, आधारभूत संरचना के स्तर पर सहयोग और सरकारी मशीनरी में त्वरित फ़ैसला से है. दीपक तभी तक उजाला देगा, जब तक कि उसमें तेल हो. इसके बाद कुछ देर तक दीपक जलेगा जरूर, लेकिन तब उसकी बाती जलेगी. दूसरे राज्यों में आज जो विकास देख रहे हैं, वह एकाएक नहीं आया है. 10-15 वर्ष पहले इसकी शुरुआत हो चुकी थी. बिहार में अब जाकर यात्रा शुरू हुई है, इसलिए सबसे पहले तो सोशल नेटवर्क का सपोर्ट जरूरी है. केवल सरकार के स्तर पर नहीं, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी उद्यमियों को सहयोग और पॉजिटिव रेस्पांस मिलना चाहिए. यदि किसी प्रोजेक्ट की स्वीकृति में देर होगी, तो जाहिर है कि उसकी लागत बढ़ जायेगी. उत्पादन लागत बढ़ेगी, तो बाजार में परेशानी खड़ी होगी. फ़िर बाजार की प्रतिस्पर्धा में टिके रहना मुश्किल होगा.
लघु उद्योग को मिले बढ़ावा
बिहार के संदर्भ में एक और जरूरी चीज है - घिसे-पिटे पुराने ढर्रे के सोच को बदलना होगा. नये एप्रोच व नये आइडिया के साथ आगे बढ़ना होगा. फ्रांस, जर्मनी जैसे कई देशों ने लघु उद्योगों की बदौलत आर्थिक तरक्‍की की है. कोई जरूरी नहीं कि आप बड़ा बिजनेस या इंडस्ट्री शुरू करें. छोटे स्तर पर प्रयास किया जा सकता है. मेरी राय है कि बिहार में कम लागत (लो कॉस्ट) के बजाय बेहतर गुणवत्ता (गुड वैल्यू) पर ध्यान देने की जरूरत है. यहां उपजाऊ जमीन बहुत है. बेहतर मानव संसाधन है. इसका इस्तेमाल करना चाहिए. कृषि में कुछ करना है, तो क्यों नहीं इसी में ऊंची गुणवत्ता पर सोचें. गन्ना में उत्पादकता कम है, तो सिर्फ़ शुगर इंडस्ट्री तक क्यों, इसके बाइ प्रोडक्ट पर सोचें. मेरे कहने का मतलब है कि बिहार को नयी सोच की जरूरत है.
बेन एक बेहतर प्रयास
बिहार में सरकार ने कोशिश शुरू की है. यदि आप लंबी सोच लेकर चले हैं, तो इंटरमीडियट रिजल्ट देना जरूरी होता है. परियोजनाओं को संपूर्ण रूप से जमीन पर उतरने में वक्त लगेगा. इस बीच कैपिसिटी बिल्डअप करते जाना होगा. यह सतत विकास के लिए जरूरी है. उपलब्धि हासिल होती रहे, तो लोगों में उम्मीद बनी रहती है. बिहार इंटरप्रेन्योर नेटवर्क (बेन) को मैं उद्यमिता के लिए बेहतर प्रयास मानता हूं. बेन जैसे पचासों और प्लेटफ़ॉर्म की जरूरत है, जो पढ़े-लिखे ही नहीं, साधारण उद्यमियों को भी राह दिखा सकें. अब वक्त आ गया है कि केवल सरकार ही नियोजक की भूमिका में न रहे, बल्कि उद्यमीगण दूसरे को नौकरी दे सकें.
- प्रो पीयूष कुमार सिन्हा -
(पटना निवासी पीयूष कुमार सिन्हा, आइआइएम, अहमदाबाद में मार्केटिंग के प्रोफ़ेसर और सेंटर फ़ॉर रिटेलिंग के चेयरपर्सन हैं. लंबे समय तक एक्‍सआइएम, भुवनेश्वर और आइआइएम, बेंगलुरु में भी पढ़ाया. यह आलेख रजनीश उपाध्याय से बातचीत पर आधारित है.)

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